समुंदर के पार से अगर तुम्हे
आवाज़ सुनाई दें तो,
हवा से पूछ लो एक बार पलट कर,
“क्यों, आज किसके लिए ख़त लाई हो?”
शायद पता भूल गयी होगी पड़ोस की लड़की का।
पापा से पप्पी लेती आ रही हवा को और बोझ कौन देगा?
शायद बगीचे में बैठी आँखों को एक उलझी हुई लट
सुलझाने का सपना ले आई होगी वो पागल।
शायद गिरते पत्तों का ख़याल कर
उनका गिरना आसान करने झूले सी आई होगी वो।
अगर कुछ न हो तो समझ लो
कि कही परे मैंने यादों की किताब में
एक और कविता लिख ली।
तुम पूछो हवा से तो खत है तुम्हारा,
एक कहानी उन तन्हा रातों के लिए,
या लोरी सी कभी।
नहीं पूछो तो गुज़रती हवा की गुस्ताख़ी माफ़ कर
उसे भटकते हुए आने दो वापस
इस दुनिया में भी उसे पन्ने पलटने का काम है आज।
WOWW……….. bahut achha hai!!
Tu hi mera sabse loyal reader hai at the moment after my dad. 🙂 thank you beta :*